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न जाने मशवरे कितने लगे होंगे कुचलने में, कली आज़ाद

न जाने मशवरे कितने लगे होंगे कुचलने में,
कली आज़ाद थी जो अब गुलों की कसमसाहट है
शिकन-ए-मुफ़लिसी में जो उगे थे ख़्वाब आँखों में,
वो अब गालों से बहते आँसुओं की डगमगाहट है I was about to write on a sparrow..
But right after the first line..
That picture you sent me, flashed in my mind..

The sweet kids you drew the "Earth Day" presentations for..
And the creation happened..

Much Love
न जाने मशवरे कितने लगे होंगे कुचलने में,
कली आज़ाद थी जो अब गुलों की कसमसाहट है
शिकन-ए-मुफ़लिसी में जो उगे थे ख़्वाब आँखों में,
वो अब गालों से बहते आँसुओं की डगमगाहट है I was about to write on a sparrow..
But right after the first line..
That picture you sent me, flashed in my mind..

The sweet kids you drew the "Earth Day" presentations for..
And the creation happened..

Much Love