और फिर उस रोज़ ख्वाहिशों के दरवाज़े पर दस्तक दी, सूरज की किरनों में चमकते कुछ ख्वाब, फिर से निकलने को बेताब दिखे, कुछ उम्मीदों के पंख लिए, कहीं दूर सपनीली दुनिया में उड़ने को मचलते दिखे, अजनबी आहट संग दूर सफ़र पर चलने को तैयार दिखे , और फ़िर उस रोज़, कुछ ख्वाब दामन में थामकर, वो घर से निकल पड़े, एक अनजाने सफ़र पर, एक मंज़िल की तलाश में, वो चंद ख्वाहिशों संग, बस चलते दिखे.......! ©parijat #wanderer #booklover