उलझनों शिकायतों कई सवालो से भरा हुआ हुं मै, क्यों हुआ कैसे हुआ इस सोच मे कब से डूबा हुआ मै हद से ज्यादा चाह कर , फिर नफरत किसी अपने की बन चुका हूँ मैं, एक बुलबुले सा नाजुक था मै, तुम आँखे क्या चढाती फुट जाता था मै, तुम्हें ये खुशी देगा, तुम्हें ये बुरा ना लग जाए हर चीज से घबराता था मै, अब भी कहा कुछ बदला है सिवाय इसके, की पत्थर बन चुका हूँ मै, तेरा गम अब तक लिए फिर रहा हूँ मैं, देख खुद ही खुद का दुश्मन बना फिर रहा हूँ मैं, ©Rahul Gothwal उलझनों शिकायतों कई सवालो से भरा हुआ हुं मै, क्यों हुआ कैसे हुआ इस सोच मे कब से डूबा हुआ मै हद से ज्यादा चाह कर , फिर नफरत किसी अपने की बन चुका हूँ मैं, एक बुलबुले सा नाजुक था मै, तुम आँखे क्या चढाती फुट जाता था मै, तुम्हें ये खुशी देगा, तुम्हें ये बुरा ना लग जाए हर चीज से घबराता था मै, अब भी कहा कुछ बदला है सिवाय इसके, की पत्थर बन चुका हूँ मै, तेरा गम अब तक लिए फिर रहा हूँ मैं, देख खुद ही खुद का दुश्मन बना फिर रहा हूँ मैं,