दूर क्षितिज पर प्रेम पिपासु, वर्षण को आतुर बादल, जल बाणों की बौछारों से, धरा आह्लाद करें बादल।। आन्दोलित हो अपनी सारी, सम्पत्ति वार दिये बादल, यही समर्पित प्रेम निशानी, खुद को मिटा चले बादल।। धरती भी ऋण सिर ना धारे, फिर पोषित करती बादल, देख आसमां पर फिर से, छा कर उभरे हैं बादल।। ✍️... ©Tara Chandra Kandpal #चक्र