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कम्बख़त ये बारिश भी हर रोज आ जाती हैं किसी को सुकू

कम्बख़त ये बारिश भी हर रोज आ जाती हैं किसी को सुकून देती तो किसी के दिलो को जलाकर खाक कर जाती हैं 
                                                                  सिद्धार्थ वर्मा दिलों को जलाए
कम्बख़त ये बारिश भी हर रोज आ जाती हैं किसी को सुकून देती तो किसी के दिलो को जलाकर खाक कर जाती हैं 
                                                                  सिद्धार्थ वर्मा दिलों को जलाए