नहीं था तो बस ये कि प्रेम नहीं था परिपूर्ण भाषा की बाध्यता नहीं आई मेरे और तुम्हारे मध्य इतनी शिथिलता थी देह में कि नांव का कम्पन भी शून्य प्रतीत होता था वैसे ही जैसे हृदय का कम्पन रोक सकता था मैं ध्वनियों को मुख के भीतर कहीं कण्ठ के आस-पास की जगह में किन्तु एक हिचकी ने सब उगल दिया तुम आँखे मूंद इस अभिलाषा में खड़ी थी देव प्रतिमा के समक्ष कोई आएगा और अर्पित करेगा तुम्हारे नाम का पुष्प पर कहाँ हुआ कुछ ऐसा ? एक हाथ के स्पर्श मात्र से प्रेम की कल्पना पर शोक का स्वप्न चढ़ गया पेट में गुदगुदाता प्रेम ऊपर आते-आते हृदयघात बन जाता है विरह की हिचकी भरने का सामर्थ्य कहाँ होता है सबके पास ... #NojotoQuote