किसी फूल को छूकर जैसा अहसास होता मेरी उंगलियों को, उसका पैमाना नहीं... उसकी छुअन मन पर और उसकी महक बस जाती है उंगलियों की सतह पर! सच, बस उतने ही अपनेपन की गुजारिश रखती हूं साहेब, जो अगर तनिक गुंजाइश हो! किसी फूल को छूकर जैसा अहसास होता मेरी उंगलियों को, उसका पैमाना नहीं... उसकी छुअन मन पर और उसकी महक बस जाती है उंगलियों की सतह पर! सच, बस उतने ही अपनेपन की गुजारिश रखती हूं साहेब,