कुछ रेह जाता है सबकुछ होकेभी कुछ कहाँनिया अधूरी रेह जाती है वो सताती है सपनोमे आके वो जगाती है खुले आँखोमे आकर मेला जैसे लग जाता है दुकाने खुल जाती है बरबादियोकी चिझे लेकर कुछ रेह जाता है सबकुछ होकेभी एक खलिश बस रेह जाती है #secondquote ek khalish