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न गुफ्तगू उनसे न कोई बात होती, अब तो बिना मिले ही

न गुफ्तगू उनसे न कोई बात होती,
अब तो बिना मिले ही उनसे रात होती है।

उनके हुस्न की परछाईं दिखती है कभी छुप जाती है,
न जाने ज़हन के साथ ये कैसी खुराफ़ात होती है।

मर्ज़ी ख़ुदा की है कोई होते-होते भी हुआ न अपना,
ये क्या कम फ़ज़ल है कि ख्वाबों में ही सही पर मुलाक़ात होतो है।

~Hilal #Baat #Mulakat
न गुफ्तगू उनसे न कोई बात होती,
अब तो बिना मिले ही उनसे रात होती है।

उनके हुस्न की परछाईं दिखती है कभी छुप जाती है,
न जाने ज़हन के साथ ये कैसी खुराफ़ात होती है।

मर्ज़ी ख़ुदा की है कोई होते-होते भी हुआ न अपना,
ये क्या कम फ़ज़ल है कि ख्वाबों में ही सही पर मुलाक़ात होतो है।

~Hilal #Baat #Mulakat