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चांद जा रहा था बादलों में छिपा जा रहा था, रात कि त

चांद जा रहा था बादलों में छिपा जा रहा था,
रात कि तन्हाइयों में वक्त भी ढला जा रहा था,
जिन्दगी कि शोर  ने लूट मचा रखी हो जैसे,
एक मन था जो अलविदा कहते जा रहा था।
                                माधवी मधु

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चांद जा रहा था बादलों में छिपा जा रहा था,
रात कि तन्हाइयों में वक्त भी ढला जा रहा था,
जिन्दगी कि शोर  ने लूट मचा रखी हो जैसे,
एक मन था जो अलविदा कहते जा रहा था।
                                माधवी मधु

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