राजनीति का खेल, कौन होगा पास कौन होगा फेल। महत्वाकांक्षा सब पर भारी, सिद्धांत गया लेने तेल। भरोसा करे कोई कैसे? कब किसका बिगाड़ दें ये खेल। हार मानने को तैयार नहीं, करना पड़े कितने ही झमेल। जनता के पैसों पर करते ऐश, समझते है हाथ का मैल। लोकतंत्र की कसमें खाकर, खेल रहे ये गंदा खेल। जनता भी देख रही है, प्रतिनिधियों की राजनीति बेमेल। संविधान में हो संशोधन,रूके फिर ना हो ऐसी रेलमपेल । *****कुमार मनोज (नवीन) ***** #rajneet #