सिलसिले तोड़ गया वो सभी जाते जाते वर्ना इतने तो मरासिम थे कि आते जाते शिकवा-ए-ज़ुल्मत-ए-शब से तो कहीं बेहतर था अपने हिस्से की कोई शम्अ' जलाते जाते कितना आसाँ था तिरे हिज्र में मरना जानाँ फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते जाते जश्न-ए-मक़्तल ही न बरपा हुआ वर्ना हम भी पा-ब-जौलाँ ही सही नाचते गाते जाते इस की वो जाने उसे पास-ए-वफ़ा था कि न था तुम 'फ़राज़' अपनी तरफ़ से तो निभाते जाते ©SamEeR “Sam" KhAn #सिलसिले #शमा