खायी थी कसम एक रोज जो कभी, जाते जाते कसम भी पूरी कर आए थे वो। जी रहे थे लाल जो देश के लिए, जान अपनी देश पर लुटा आए थे वो। मायूसी चेहरे पे जिनके कभी छाई नहीं, मुस्कुरा मौत को भी मात दे आए थे वो। जमा नहीं लहू जिनका शेर थे ऐसे बलिदानी, एक दहाड़ से ही कण-कण में गर्मी ले आए थे वो। मौत शर्मिंदा सर झुकाए खड़ी सामने जिनके, खुद्दार थे हंसते-हंसते झूला फांसी का झूल आए थे वो। बेड़ियाँ भी बाँध ना पाई जिनको ऐसे आजाद हैं जो, बेजुआं थे नही शहीद-ए-आजम कहलाए थे वो। ✍️✍️माही #शहीद_ए_आज़म खायी थी कसम एक रोज जो कभी, जाते जाते कसम भी पूरी कर आए थे वो। जी रहे थे लाल जो देश के लिए, जान अपनी देश पर लुटा आए थे वो।