मैं क्यूँ ना उड़ूँ आख़िर कब तक छलती रहेगी ज़िंदगी मुझे, कब तक आख़िर मैं रोकूँ ख़ुद को ऊपर है विस्तार नीलगगन का, वहाँ तक पहुँचना है मुझको (अनुशीर्षक में पढ़ें) मैं क्यूँ ना उड़ूँ आख़िर कब तक छलती रहेगी ज़िंदगी मुझे, कब तक आख़िर मैं रोकूँ ख़ुद को ऊपर है विस्तार नीलगगन का, वहाँ तक पहुँचना है मुझको नहीं हूँ मैं निर्भर किसी पर,