बाहर आंधी चल रही है, बूंदा - बांदी चल रही है, और हम बंद कमरे में, दरवाजा, खिड़की, वेंटिलेटर तक - बंद कर महसूस करना नहीं चाहते - उड़ भी सकता है घर आंधी अंधड़ में, बह भी सकता है बरसात -बाढ़ में, गजब के कल्पना -हीन हो चुके हम, भला क्या, चेतना -हीन हो चुके हम। ©BANDHETIYA OFFICIAL #चेतना से परे! #samandar