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रोज तारों की नुमाइश में खलल पड़ता है, चाँद पागल है

रोज तारों की नुमाइश में खलल पड़ता है,
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है,
रोज पत्थर की हिमाकत में ग़ज़ल लिखते है,
रोज शीशो से कोई काम निकल पढता है।

©Future Generations
  #rahat indori

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