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एक अधूरी तस्वीर क़ैद है ज़हन में, जो लौट आओ तो

एक  अधूरी  तस्वीर  क़ैद है ज़हन में,
जो लौट आओ तो मुकम्मल हो जाएँ

वो रस्मो-रिवाज जो क़ातिल है तुम्हारे,
छोड़ आओ तो ज़िंदगी आबाद हो जाएँ

बुझे चिराग़ लिये तुम घूमते  हो शहर  में,
लगालो दाग मुझसा की वो चाँद हो जाएँ
एक  अधूरी  तस्वीर  क़ैद है ज़हन में,
जो लौट आओ तो मुकम्मल हो जाएँ

वो रस्मो-रिवाज जो क़ातिल है तुम्हारे,
छोड़ आओ तो ज़िंदगी आबाद हो जाएँ

बुझे चिराग़ लिये तुम घूमते  हो शहर  में,
लगालो दाग मुझसा की वो चाँद हो जाएँ