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आँचल पट छूते ही माँ को आँचल बन जाता है । कपडा ,कपड

आँचल पट छूते ही माँ को आँचल बन जाता है ।
कपडा ,कपडा नहीं रहता अक्षय कवच बन जाता है।।

धूप में छाया ,बरसात में छाता बन जाता है।
कपडा ,कपडा नहीं रहता कवच बन जाता है।।

घनी छांव है, कानन दुलार का ये लगता है।
सहरा में भी सज़र बन कर ये बचाता है।। माँ का आँचल sukki Ritika suryavanshi pooja negi# rahul minhas डॉ.अजय मिश्र aman6.1
आँचल पट छूते ही माँ को आँचल बन जाता है ।
कपडा ,कपडा नहीं रहता अक्षय कवच बन जाता है।।

धूप में छाया ,बरसात में छाता बन जाता है।
कपडा ,कपडा नहीं रहता कवच बन जाता है।।

घनी छांव है, कानन दुलार का ये लगता है।
सहरा में भी सज़र बन कर ये बचाता है।। माँ का आँचल sukki Ritika suryavanshi pooja negi# rahul minhas डॉ.अजय मिश्र aman6.1
ravisharma5699

Ravi Sharma

Silver Star
Growing Creator