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वो मनोज था मन में उसके भरा युद्ध का ज्वार था वैरी

वो मनोज था मन में उसके भरा युद्ध का ज्वार था
वैरी के खातिर क्रोध भरा था निज जननी का प्यार था
चारों बंकर उड़ा दिए फिर खेल मृत्यु से खेला वो
पड़ा सामने जो नजरों के महाकाल को झेला वो
यूपी की धरती का बेटा सीतापुर से आता था
साहस बहता रगों में उसकी हर विपदा से भिड़ जाता था।
बाहर से दिखता शांत सौम्य भीतर पावक का गोला था
चेहरे से लगता क्षीरसिंधु और दिल में उसके शोला था
परमवीर का परम ध्येय ही परम चक्र को पाना था
भोले का धर कर रौद्र रूप तांडव सबको दिखलाना था
संदेह सभी के मन में था यह मानव है या महाकाल 
फुर्ती चीते सी बाजू में गर्जन जैसे हो सिंह लाल
अभिमन्यु था कारगिल में सारे द्वारों को तोड़ दिया
जो शत्रु आंखों के आगे था ईश्वर से नाता जोड़ दिया
वो वीरभद्र कैलाशी का कान्हा का चक्र सुदर्शन था
सौमित्र बना श्री राघव का भारत माता का श्रवण था
सबको दोजख दिखलाकर खुद जन्नत को प्रस्थान किया
मृत्यु की गोदी जाते ही जन गण मन का था गान किया
बस मेरी इच्छा हे प्रभुवर एक दिन मनोज बन पाउ मैं
करके सेवा निज जननी की तब सुरपुर को जाउ मैं
जब याद करो रणधीरे की दिल में उबाल सा आता है
मैं भी जाऊंगा सीमा पर दिल जोरों से चिल्लाता है
यदि भारत मां का प्यार मिला तो एक दिन सीमा पर जाऊंगा
जो सिंह गोरखा कर गुजरा वह ही मैं भी कर जाऊंगा
मन प्रमुदित तन आनंदित हो जो कुछ ऐसा कर पाऊ मैं
शत्रु नजरों के आगे आए और मनोज बन जाऊ मैं
भारत माता की पावन माटी जिससे जीवन संसार मिला
पावन पावक जल वायु पवन धरती से कितना प्यार मिला
तन मिल जाए इन तत्वों में मन भारत मां के पास रहे
प्रमुदित मनोज बन सकता है हर पल मन में विश्वास रहे।।

©Pramudit Pandey  krishn"
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