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जिंदगी जिंदगी में ना साथी है ना सहेली फिर भी भीड़

जिंदगी
जिंदगी में ना साथी है ना सहेली 
फिर भी भीड़ की तन्हाइयों में गुम हो गई है पहचान ।

ना ख्वाब है ना अरमान
फिर भी  रहती है टूटे हुए  मकान ।

 ना प्यार है  ना तकरार
 फिर भी पड़ी हुई है बेबस जिंदगी थकान । 

ना खुशी है ना गम 
फिर भी ढही हुई है बाढ़ में दुकान 
।

 ना आशु है ना हंसी
फिर भी मनुष्य हो गया है बेजान।

ना छांव है ना धूप
फिर भी लोग लग रहे है अनजान।

©Anita Yadav
  # my poem #
anitayadav5966

Anita Yadav

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# my poem #

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