लिपट गई बो मुझसे,जैसे हो इक बेल लता सी, नन्हे कोमल हाथों का आलिंगन,मानो करती हो अभिनन्दन, पर में एक पिता,,इक पल मानो इक युग बीता,, उसका स्पर्श,बंदन अभिनन्दन,दे गया मुझको हुक जाता सी, क्या?बो परजीवी है?जो लिपट गले के आंगन में झूल उठी अमर बेल लता सी, अब जेहन सोचे एक पिता का,,में माली हूं इस बगिया का, बेटी तो परजीवी है अमर बेल लता सी।। बेटी तो परजीवी है,अमर बेल लता सी