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क्यों रहते हो खामोश हर पल, कुछ कहते ही नहीं अनकहे

क्यों रहते हो खामोश हर पल, कुछ कहते ही नहीं
अनकहे लफ्ज़ समझती हूं तेरी, तुम समझते क्यों नहीं 
हर पल मैं सोचूं, आखिर खता क्या है मेरी
मुझ जैसा मुझसे कभी तुम मिलते क्यों नहीं.....

नाराज़ नहीं हूं तुमसे, फिर भी दिल ये परेशान है,
किसी कहूं मैं अपना, एक तू ही मेरी जान है
चाहत मेरे दिल की तुम समझते क्यों नहीं 
मुझ जैसा मुझसे कभी तुम मिलते क्यों नहीं....

सुना है सच्ची यारी तुम निभाते हो बहुत 
मिलते हो अपने यारों से दिल खोल कर बहुत
उन्हीं लहजे में मुझसे भी तुम मिलते क्यों नहीं
मुझ जैसा मुझसे कभी तुम मिलते क्यों नहीं....

ना सह पाऊं मैं देख चेहरे पर उदासी को तेरी,
देते हो सजा क्यों मुझको, क्या खता है मेरी
छिपाते हो क्यूं बातें, खुलकर मुझसे कहते क्यूं नहीं
मुझ जैसा मुझसे कभी तुम मिलते क्यों नहीं....

©Ƈђɇҭnᴀ Ðuвєɏ
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