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इंसान हूँ, मगर आम हूँ, जुनून बेचता हूँ । मैं चंद स

 इंसान हूँ, मगर आम हूँ, जुनून बेचता हूँ ।
मैं चंद सुकून के लिए, सुकून बेचता हूँ ।।
दो पल आराम के लिये, हर रोज़ निकलता हूँ,
बिखरता हूँ, समेटता हूँ, जमता हूँ, पिघलता हूँ ।
यूँ तो हर रोज़ हारता हूँ, पर हार नहीं मानता हूँ,
छुप छुप कर टूटता हूँ, बस मैं ही जानता हूँ ।

मैं आम हूँ, बस इतनी ही मेरी पहचान है ,
 इंसान हूँ, मगर आम हूँ, जुनून बेचता हूँ ।
मैं चंद सुकून के लिए, सुकून बेचता हूँ ।।
दो पल आराम के लिये, हर रोज़ निकलता हूँ,
बिखरता हूँ, समेटता हूँ, जमता हूँ, पिघलता हूँ ।
यूँ तो हर रोज़ हारता हूँ, पर हार नहीं मानता हूँ,
छुप छुप कर टूटता हूँ, बस मैं ही जानता हूँ ।

मैं आम हूँ, बस इतनी ही मेरी पहचान है ,