इंसान हूँ, मगर आम हूँ, जुनून बेचता हूँ । मैं चंद सुकून के लिए, सुकून बेचता हूँ ।। दो पल आराम के लिये, हर रोज़ निकलता हूँ, बिखरता हूँ, समेटता हूँ, जमता हूँ, पिघलता हूँ । यूँ तो हर रोज़ हारता हूँ, पर हार नहीं मानता हूँ, छुप छुप कर टूटता हूँ, बस मैं ही जानता हूँ । मैं आम हूँ, बस इतनी ही मेरी पहचान है ,