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मंज़िल की चाह में कोसिशे हजार है, गिरते पड़ते उम्म

मंज़िल की चाह में कोसिशे हजार है,
गिरते पड़ते उम्मीद का साथ है,
कुछ टूटे कुछ जुडे है,
कोसिसो की पाव थक सी गए है,
अब सपनों कि पंख़
आस उड़ान कि भरे है.........

©Sneha Mishra FLY
मंज़िल की चाह में कोसिशे हजार है,
गिरते पड़ते उम्मीद का साथ है,
कुछ टूटे कुछ जुडे है,
कोसिसो की पाव थक सी गए है,
अब सपनों कि पंख़
आस उड़ान कि भरे है.........

©Sneha Mishra FLY
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Sneha Mishra

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