काश हम फिर से बच्चे हो जातें थोड़े मन के सच्चें हो जातें ना ख़ुद की चिंता, ना दुनियाँ की फ़िकर बेफ़िक्र दोस्तों संघ रेत के घरौंदे बनातें बारिश के पानी में कागज़ की कश्ती तैराकर यारों संघ हार-जीत की होड़ लगातें जब भी डरे-सहमे होते रात के अंधेरों से माँ के आँचल में चुपके से छिप जाते उसकी ममता की मीठी लोरी सुनकर गोदी में सर रखकर नींदों में खो जातें।।PKM.. काश हम फिर से बच्चे हो जाते...