ये वैलेंटाइन का हफ्ता , हफ्ता वसूली सा लगता है। कभी ये दे, कभी वो दे, कभी हां कर, कभी न कर। अजीब ही बवा हो गया है। हमारे यहां तो कहते हैं कि दोस्त, रिश्तेदार, पड़ोसी भी किसी जन्म के रिश्ते हैं। इतनी विस्तृत श्रृंखला है रिश्तों की, उसमें कोई कैसे हफ्ते के रिश्ते पचा ले। छोड़ो यह तामझाम, बसंत का मौसम है, बसंती मन बना लें। फागुन में भर भर के गुलाल अबीर डालें। खुश रहने के बड़े जतन हैं, ये बिलायती रोग न पालें।
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