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जिस्म में जान अब भी बाकी है पंख काट दिए तो क़्या हु

जिस्म में जान अब भी बाकी है
पंख काट दिए तो क़्या हुआ
मेरे हौसलों में उड़ान अब भी बाकी है

तन की सुंदरता ही मिटाई है तूने
मेरे सोच की सुंदरता अब भी बाकी है
चेहरे ही बिगाड़ा है ना
मेरा दिल साफ़ अब भी बाकी है

आंखे ही जलाई है तूने
पर उनमे तेज़ाब अब भी बाकी है
जल जाएगा मेरे सवालों से तू
क्यूंकि उनमें आग अब भी बाकी है

इंसानो की इस बसती में
कुछ हैवान अब भी बाकी है
भरे नहीं है अभी ज़ख़्म मेरे
उनका हिसाब लेना अब भी बाकी है

सम्मान तो तूने खोया है
मेरा आत्मसम्मान अब भी बाकी है
तेरी हर बदसूलकी का
तुझे अंजाम भुगतना अभी बाकी है

देर है वहां अंधेर नहीं है
क्यूंकि उस ख़ुदा की हर लाठी सच्ची है
मिल जाएगा तुझे भी करनी का फल
बस मेरी गुहार लगाना अभी बाकी है

©Irfan Khan
  HAUSLE
irfankhan9372

Irfan Khan

Silver Star
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HAUSLE #Poetry

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