याद आ ही जाती है ओ बुरे दिनों की. जब मैं न समझ थी, पर ओ नालायक। मन करता था उससे हमेशा रहूँ दूर , पर लोगों के डर से हो जाती थी मजबूर। मन करता था कभी नजर न आऊँ उसे, पर ओ क्या जाने की कितना दर्द होता है इसे । रिश्ते ऐसे थे बिच के की कोई गलत कहना क्या सोच भी नी सकते थे भाई लगता था ओ •••पर मुझे हैवान से कम नही दिखते थे गुस्सा तो बहुत आता था ओर दर्द कही कम नहीं होती लेकिन डर इतना था की बस रोती और खुद चुप होती । यही 10 ,12 साल की छोटी बच्ची थी मै नादान कहाँ पता थी ये सब बाते थी बेखबर ओर अनजान । लगता था डर जब होता था अटपटा और गलत किसको बताती और कौन समझता मुझे सही । सबके सामने तो ओ बड़े बनते थे दयालू पर मेरे लिये थे सबसे बड़े कमीने ख्यालू । करते थे ओ ऐसी-ऐसी हरकतें , की होने लगी थी मुझे घिन्ं और नफरतें । मैं अपने जिन्दगी और पढ़ाई से बहुत करती थी प्यार किसी को कुछ नही बोलती थी बस सहते गयी अत्यचार। जब मै दूर भागती तो मुझे अकेले में डराते धमकाते थे, मै मन ही मन रोती थी और फिर ओ मेरे नजदीक आ जाते थे। कोई नहीं होता था उस समय हमें ये सब सही गलत बताने वाले, नही समझ आता था की क्यू होते हैं ऐसे करने वाले । लगता था मर जाना अच्छा है , पर क्यूँ ये भी समझ नी आता था। सच में अब मै भूलने की कोशिश करती हूँ पर याद आ ही जाती है ओ दिन••••• कभी न भुली थी न कभी भूल पाऊँगी पर हाँ मैनें कोई गलती नहीं की थी , पर गलती तो की थी मैनें अपने बड़ो को नी बता कर किन्तु करती भी क्या डर लगता था लोंगो से की मुझे ही गलत समझ न बेठे । पर हाँ हमने हिम्मत नही हारी और आज अपनी जिन्दगी जी रही हूँ । खुश हूँ समझदार हूँ पर भुली नही हूँ ओ दिन •• #भुली #नही हूँ ओ #दिन pooja negi# Suman Zaniyan my heartbeat