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पीहर.. घरौंदे की तुसली को मन भर निहार लेती हूं गाँ

पीहर..
घरौंदे की तुसली को
मन भर निहार लेती हूं
गाँव की याद आती है
जब आंखे मूंद लेती हूं..

माटी के कैसे, मंदिर की बाती
पावँ में महावर,हथेली में मेहंदी
सावन के श्रृंगार,
नैहर के त्योहार,
मन की अंजुरी में
सब को समेट लेती हूं..

पीली-पीली सरसों ,हरी-हरी दूब
सखियों की टोलि,खेतों की धूप
कच्चे मुंडेर पर,पक्के परिवार
यूँ ही यादों की पोटली खोल लेती हूं 
सिलौटी की हल्दी
गौने के चावल,
विदाई के गीत,
सासु की पायल,
अम्मा की बातें
भाभी की चुटकी,
हुंक उठती है,तो
पीहर की चुनरी ओड़, लेती हूं ...
पीहर..
घरौंदे की तुसली को
मन भर निहार लेती हूं
गाँव की याद आती है
जब आंखे मूंद लेती हूं..

माटी के कैसे, मंदिर की बाती
पावँ में महावर,हथेली में मेहंदी
सावन के श्रृंगार,
नैहर के त्योहार,
मन की अंजुरी में
सब को समेट लेती हूं..

पीली-पीली सरसों ,हरी-हरी दूब
सखियों की टोलि,खेतों की धूप
कच्चे मुंडेर पर,पक्के परिवार
यूँ ही यादों की पोटली खोल लेती हूं 
सिलौटी की हल्दी
गौने के चावल,
विदाई के गीत,
सासु की पायल,
अम्मा की बातें
भाभी की चुटकी,
हुंक उठती है,तो
पीहर की चुनरी ओड़, लेती हूं ...