#दिनांक 4.2.2022 #विषय बसंत पंचमी #विधा काव्य बसंती ओढ़ कर चूनर सजी ससुराल जाती है, पहना गहना धूप सा , भली चमक भ्रमाती है | अम्बुआ की डाली बौराई, झूमें पात बैठ आली, झुकी चाह बैठी आगोश मद मधुप सुबकाती है | भंवरे डोले बाग कली पे ,कोयल कूकती पुकार।। सरसो पीली फूली खेत में, धरती दिखता श्रृंगार। मादकता छाई हुई, छलक ले आया रहा है प्यार।। लेकर कितनी चाहतें सी आया है मौसम मधुमास। नव पल्लव द्रुप आ रहे,पीत गिरे पते से चहुँओर। खिले पुष्प हर बाग में, नाचे ये मनमोहक मोर।। मोर पपीहा गा रहे , बहती सुखद मनभावन बयार। भ्रमर झूमते हर कली,किस्मत रहे हर्ष से हो सँवार।। स्वरचित रेखा मोहन ४/२/२२ पंजाब ©Rekha Mohan #Image..Basant Punchmi #City P