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आज भी उकेरे हुईं हूं, वो नन्हें हाथों की लिखावट, न

आज भी उकेरे हुईं हूं, वो नन्हें हाथों की लिखावट,
निश्छल, निस्वार्थ, स्नेह से परिपूर्ण
जहां द्वेष के अक्षर का स्थान ही नहीं
समानता एवं सम्मान विराजते हैं जहां;
अनुभवहीन है वो, संसार की रीतियों के विषय में
मनुष्यों को एक चश्में से देखकर
सिर्फ मनुष्य ही लिखता है..।।
मन की स्लेट पर 
आज भी उकेरे हुईं हूं, वो नन्हें हाथों की लिखावट...।। मन की स्लेट पर 
कौन लिखता है रोज़ इतना कुछ।
#मनकीस्लेट #collab #yqdidi  #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Didi
आज भी उकेरे हुईं हूं, वो नन्हें हाथों की लिखावट,
निश्छल, निस्वार्थ, स्नेह से परिपूर्ण
जहां द्वेष के अक्षर का स्थान ही नहीं
समानता एवं सम्मान विराजते हैं जहां;
अनुभवहीन है वो, संसार की रीतियों के विषय में
मनुष्यों को एक चश्में से देखकर
सिर्फ मनुष्य ही लिखता है..।।
मन की स्लेट पर 
आज भी उकेरे हुईं हूं, वो नन्हें हाथों की लिखावट...।। मन की स्लेट पर 
कौन लिखता है रोज़ इतना कुछ।
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