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प्रकृति का मनोहारी रूप सबको ही अत्यधिक सुहाता है।

प्रकृति का मनोहारी रूप सबको ही अत्यधिक सुहाता है।
इसकी सुंदरता देख कर सभी का मन बेचैन हो जाता है।

प्रकृति में दिखती सुंदरता की पराकाष्ठा का न कोई सार है।
करती जब श्रंगार धरती लगती दुल्हन से भी ज्यादा प्यारी है।

प्रकृति है जीवनदायिनी सभी को बस जीवन देती रहती है।
अन्न, पानी, हवा और धूप सबसे ही सबका पोषण करती है।

लेती ना कोई मूल्य धरा निस्वार्थ भाव से सब करती रहती है।
प्रकृति सृष्टि की पालन हारी है सबको सदैव पालती रहती है।

प्रकृति का संरक्षण करना हमारा जीवन में प्रथम कर्तव्य है। 
प्रकृति ना कुछ कहेगी कभी भी हमसे हमें समझना होता है। रचना में निम्नलिखित वाक्यांशों /शब्दावलियो का प्रयोग किया गया है
1-प्रकृति का मनोहारी रूप
2-सुंदरता की पराकाष्ठा 
3-प्रकृति जीवनदायिनी 
4-सृष्टि के पालन हारी 
5-प्रकृति का संरक्षण

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प्रकृति का मनोहारी रूप सबको ही अत्यधिक सुहाता है।
इसकी सुंदरता देख कर सभी का मन बेचैन हो जाता है।

प्रकृति में दिखती सुंदरता की पराकाष्ठा का न कोई सार है।
करती जब श्रंगार धरती लगती दुल्हन से भी ज्यादा प्यारी है।

प्रकृति है जीवनदायिनी सभी को बस जीवन देती रहती है।
अन्न, पानी, हवा और धूप सबसे ही सबका पोषण करती है।

लेती ना कोई मूल्य धरा निस्वार्थ भाव से सब करती रहती है।
प्रकृति सृष्टि की पालन हारी है सबको सदैव पालती रहती है।

प्रकृति का संरक्षण करना हमारा जीवन में प्रथम कर्तव्य है। 
प्रकृति ना कुछ कहेगी कभी भी हमसे हमें समझना होता है। रचना में निम्नलिखित वाक्यांशों /शब्दावलियो का प्रयोग किया गया है
1-प्रकृति का मनोहारी रूप
2-सुंदरता की पराकाष्ठा 
3-प्रकृति जीवनदायिनी 
4-सृष्टि के पालन हारी 
5-प्रकृति का संरक्षण

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