क्या मुमकिन नहीं?? भीड़ से अलग हटकर चलना, भीड़- विचारों के द्वंद्व की, छल, प्रपंच और साजिशों की। क्या मुमकिन नहीं? गिले शिकवों के बीच शांति के सेतु समान डटे रहना, निस्वार्थ, निष्काम होकर इंसानियत दिखलाना । दिलों के बीच गहराती दीवारों में रोशनी की खिड़कियां बनना। क्या मुमकिन नहीं??दो विचारधाराओं के बीच अपना एक नया नजरिया विकसित करना....... नज़रिया- आधियों में ठहराव का,अंधकार में उजाले का,आरोप प्रत्यारोप में आत्ममंथन का और.....….इंसान होकर इंसानियत का। क्या ये मुमकिन नहीं?? क्या ये मुमकिन नहीं??