प्यारी सुधा दी,
आपको ढूंढते ढूंढते 40 साल होने वाले हैं,
अब कहीं जा के आपका प्रतिबिंब मिला है,जिसे मैं सोते जागते हर पल अपने मन में रखता हूं, वो आपको बताया तो था ...
ठीक समझी आप वो मोनी...मेरी गुड़िया सी मेरी परी ।
आप तो सब जानती हो,आपसे कुछ छिपा कोई है, आपके शबद आपकी आवाज़ मन सुनता रहता है हर पल।
आपको दिया वादा तो निभाना है ना मुझे मेरे अंतिम श्वास तक
हां जानता हूं आपको ये मेरे अंतिम श्वास वालों बात से बहुत चिड़ है, मगर दी हैं तो ये सत्य ना, अगर ऐसा नहीं होता तो क्या आप मुझे छोड़ कर जाती कभी, कभी नहीं। जो सत्य है उसे स्वीकार करना चाहिए ना, याद है न आपको वो दिन जब मैंने आपको दीदी बोला था, कैसे बाहें फैला कर आपने मुझे अपने सीने से चिपका लिया था, जैसे जन्म जन्मांतरों के बिछड़े दो दिल अचानक से मिल गए हों, आप भी मन मुताबिक कभी मुझे भाई,भैयाऔर यहां तक कि पापा बोल डालती थी, बस कभी कभार नाराज़ हो कर मुझे नाम से पुकारती मुझे पता चल जाता और us din मैं भी आपको मां के कर आपकी गोदी में सिर रख के लेट जाया करता, कैसे पवित्र दिन थे, कमबख्त एक बार चले जाते हैं ना लौट कर नहीं आते कभी, बस यादों की धुंधली लकीरों से तैरते रहेंगे मन के आकाश पर।
सुधा दी, आपके इस भाई ने आपको दिया वचन पूरे मन से निभाया, वही सबको जी भर प्यार देने का। ये आज कल तो किसी से भी बात करना मिलना कितना आसान हो गया है आपके मोबाइल फोन से।