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कोई इंसान सारा जहान लगता है कोई भारत के विका

कोई इंसान सारा जहान लगता है 
कोई  भारत   के   विकास   तुलना   पाकिस्तान  से  करता  है।
कोई जनहित की बात नहीं कहता हिंदू मुसलमान ही कहता है।
कोई    नेता     को    जनता    का     प्रतिनिधि    समझता  है।
कोई नेता  जनता  के धन को अपनी भविष्य निधि समझता है।
कोई  अधिक  जनसंख्या को  महंगाई का  कारण  समझता है।
कोई  अधिक   बेईमानी  को   महंगाई का   कारण समझता है।
कोई इंसान को घर दे नहीं पाता घर भगवान को देने लगता है।
कोई  मंदिर बनवाकर  खुद  को  भगवान   समझने  लगता है। 
कोई   रोजगार    की    बात   को   भीख   मांगना   कहता है।
कोई   चुनाव   के   वक्त  वोट  की   भीख   मांगता  लगता है।
कोई   गद्दार   होकर   भी    खुद   को    वफादार   कहता है।
कोई    जमीर      बेचने    को   व्यापार    समझने   लगता  है।
कोई   बेईमान   होकर    भी   खुद  को  ईमानदार   कहता  है।
कोई   खुद    भ्रष्टाचारी   है   खुद   ही   थानेदार    बनता  है। 
कोई  इंसानियत  धर्म निभाता नहीं  ढोंग  धर्म का  करता  है।
कोई  धर्म के नाम पर   भड़काता है  तनिक शर्म   ना करता है।
कोई   घर    जहान   को   केवल    एक   मकान   लगता  है।
कोई   घर    किसी    को   जन्नत,  मंदिर,  उद्यान   लगता है।
कोई    गगन     में     कहकशां     का    नजारा    करता  है। 
कोई   इंसान    किसी    को    आंखों   का    तारा   लगता  है।
कोई   सारे    जहान     को   चंदा    सा   प्यारा    लगता  है।
कोई   इंसान    किसी    को    चंदा   से    प्यारा   लगता  है।
कोई हादसे के पीड़ित की पीड़ा को सामान्य वेदना समझता है। 
कोई   हादसा    पीड़ित    को    दुनिया   उजड़ना  लगता  है।
कोई   सारे   जहान   को    केवल    एक  इंसान   लगता  है।
कोई  इंसान    किसी    को     सारा     जहान   लगता   है...
                         लालीराम

©Laliram कोई इंसान सारा जहान लगता है
कोई इंसान सारा जहान लगता है 
कोई  भारत   के   विकास   तुलना   पाकिस्तान  से  करता  है।
कोई जनहित की बात नहीं कहता हिंदू मुसलमान ही कहता है।
कोई    नेता     को    जनता    का     प्रतिनिधि    समझता  है।
कोई नेता  जनता  के धन को अपनी भविष्य निधि समझता है।
कोई  अधिक  जनसंख्या को  महंगाई का  कारण  समझता है।
कोई  अधिक   बेईमानी  को   महंगाई का   कारण समझता है।
कोई इंसान को घर दे नहीं पाता घर भगवान को देने लगता है।
कोई  मंदिर बनवाकर  खुद  को  भगवान   समझने  लगता है। 
कोई   रोजगार    की    बात   को   भीख   मांगना   कहता है।
कोई   चुनाव   के   वक्त  वोट  की   भीख   मांगता  लगता है।
कोई   गद्दार   होकर   भी    खुद   को    वफादार   कहता है।
कोई    जमीर      बेचने    को   व्यापार    समझने   लगता  है।
कोई   बेईमान   होकर    भी   खुद  को  ईमानदार   कहता  है।
कोई   खुद    भ्रष्टाचारी   है   खुद   ही   थानेदार    बनता  है। 
कोई  इंसानियत  धर्म निभाता नहीं  ढोंग  धर्म का  करता  है।
कोई  धर्म के नाम पर   भड़काता है  तनिक शर्म   ना करता है।
कोई   घर    जहान   को   केवल    एक   मकान   लगता  है।
कोई   घर    किसी    को   जन्नत,  मंदिर,  उद्यान   लगता है।
कोई    गगन     में     कहकशां     का    नजारा    करता  है। 
कोई   इंसान    किसी    को    आंखों   का    तारा   लगता  है।
कोई   सारे    जहान     को   चंदा    सा   प्यारा    लगता  है।
कोई   इंसान    किसी    को    चंदा   से    प्यारा   लगता  है।
कोई हादसे के पीड़ित की पीड़ा को सामान्य वेदना समझता है। 
कोई   हादसा    पीड़ित    को    दुनिया   उजड़ना  लगता  है।
कोई   सारे   जहान   को    केवल    एक  इंसान   लगता  है।
कोई  इंसान    किसी    को     सारा     जहान   लगता   है...
                         लालीराम

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Laliram

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कोई इंसान सारा जहान लगता है #कविता