हांँ मैं आज की नारी हूंँ.... मैं अबला और नादान नहीं हूंँ, खुद की एक पहचान बनाई है, मैं पहचान की मोहताज नहीं हूंँ। खुद्दारी भरी है मेरे जहन में भी और अब मैं भी स्वाभिमानी हूंँ, हाँ हाँ मैं आज की एक नारी हूंँ.... मैं पुरूषों से कम नहीं जरा भी पुरुषों ने भी यह बात मानी है। पुरुषों से काम किया है बेहतर, पुरुषों से ही लोहा मनवाया है। मै हर क्षेत्र में पुरुषों पर भारी हूंँ। हांँ हांँ मैं भी आज की नारी हूंँ..... खेतों से खेल के मैदानों तक हूंँ मैं सीमा से हिमालय तक में हूँ मैं ही अंतरिक्ष से सागर तक हूंँ मैं डॉक्टर,इंजीनियर,लेखक हूंँ मैं मांँ,बहन,पत्नी,बहू व बेटी हूंँ हांँ हांँ मैं भी आज की नारी हूंँ.... हांँ हांँ मैं भी आज की नारी हूंँ.... -"Ek Soch" Any writer can write about "आज की नारी"* *RULES*📜- 1. The word given above must come atleast once in your write-up. *Poem should be in maximum 20lines/200 words,*