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हाँ मैं मजदूर हूँ मरने को मजबूर हूँ दो वक्त के निव

हाँ मैं मजदूर हूँ
मरने को मजबूर हूँ
दो वक्त के निवाले को
घर में सबको पालने को
घर से हो गया दूर हूँ
हाँ मैं मजदूर हूँ
देख के आते हैं आँसू
सिसकते नौनिहालों को
भरने को इनके पेट को
पैदल चलने को मजबूर हूँ
मैं घर से बहुत दूर हूँ
हाँ मैं मजदूर हूँ
देखती होगी राह कहीं
मेरी माँ की बूढ़ी आँखें
कल कहूंगा मैं भी
हां सबके करीब हूँ
हाँ मैं मजदूर हूँ
लील गयी है आज जो
काल की विकराल लौ
कट गए नींद में ही
घर के देखते ख़्वाब वो
अब कैसे मिलूंगा माँ
अभी तो मैं दूर हूँ
पास आने की चाह में
हो गया हमेशा के लिए दूर हूँ
कौन समझे दर्द को
कि मैं कितना मजबूर हूँ
बस जनता हूँ यहीं मैं
हाँ मैं बस मजदूर हूँ
मैं बस एक मजदूर हूँ
😢 शायद उतने शब्द नहीं हैं मेरे पास जो इस हृदयविदारक घटना के बारे में कुछ सही से कह सकें। बस इतना ही कह पाऊँगा कि खबर सुन के और न्यूज चैनल पर तस्वीरों को देख के कलेजा कांप गया है। कोई जो सोया हो अपने घर के सपने आँखों में सजा के और सुबह में उसे मौत मिल जाय तो इस से क्रूर काल की नियति कोई और नहीं हो सकती।
आज सुबह में जो औरंगाबाद में 16 मजदूर एक मालगाड़ी के नीचे आकर काल के गाल में समा गए। कितनी विकट और दयनीय परिस्थिति है कि कुछ प्रवासी मजदूर जो अपने घर जाने के लिए पैदल ही महाराष्ट्र से मध्यप्रदेश की ओर चले ताकि श्रमिक एक्सप्रेस पकड़ के अपने घर जा सकें। पर चलते चलते इतना थक गए कि वहीं पटरियों पर ही सो गए। और आज तड़के एक मालगाड़ी उनके ऊपर से गुजर गई और नींद में होने की वजह से उन्हें सम्भलने तक का मौका न मिला। रेलगाड़ी के ड्राइवर ने भरसक कोशिश की रफ़्तार थामने की रेलगाड़ी की पर तब तक देर हो चुकी थी और 16 मजदूर मृत्यु की गोद में पहुचं चुके थे।
यहां अगर गलती खोजने की कोशिश करें या फिर इस पूरी घटना का विश्लेषण, तब भी समझ नहीं आता कि इसमें कमी किसकी है। क्या राज्य सरकार,केंद्र सरकार नाकाम रही है अपने उद्देश्यों में या फिर मजदूर ज्यादा व्याकुल हैं भूख और महामारी के डर से अपने घर पहुंचने की जल्दी को लेकर???
कुछ हद तक दोषी मानें तो सरकार को कह सकते हैं कि उन्हें आज की इस परिस्थिति में आगे आकर सभी को यक़ीन दिलाना जरूरी है कि वो सुरक्षित रहें और सरकार उनके जीवन यापन,भोजन और स्वास्थ्य हर तरह से उनका ख़याल रखेगी। यहां चूक हुई है तो बस यही है कि लोग परेशान और डरे हुए हैं जिन्हें कोई न तो भरोसा दिलाया जा रहा है और न ही सही मायनों में कोई मदद उन तक पहुँच पा रही है। ऐसे में हमारे प्रधानमंत्री जी को स्वयं देश के मजदूर वर्ग और आम जनता को फिर से सम्बोधित कर के उन्हें यक़ीन दिलाएं और राज्य सरकारों को भी निर्देशित करें ताकि कोई भी ऐसी स्थित में परेशान हो कर गलत कदम न उठाए।
अब जो जनहानि हुई है उसकी क्षतिपूर्ति तो नहीं की जा सकती परन्तु ऐसी ही कोई और दुर्घटना को घटने से रोकने के लिए सजग होना आवश्यक है।

आज इस दुःखद घटना में मृत्यु को प्राप्त सभी मजदूरों की आत्मा को ईश्वर शांति दे और उनके घर वालों को इस विकट परिस्थिति से उबरने की शक्ति दें
ॐ शांति ॐ शांति ॐ शांति
हाँ मैं मजदूर हूँ
मरने को मजबूर हूँ
दो वक्त के निवाले को
घर में सबको पालने को
घर से हो गया दूर हूँ
हाँ मैं मजदूर हूँ
देख के आते हैं आँसू
सिसकते नौनिहालों को
भरने को इनके पेट को
पैदल चलने को मजबूर हूँ
मैं घर से बहुत दूर हूँ
हाँ मैं मजदूर हूँ
देखती होगी राह कहीं
मेरी माँ की बूढ़ी आँखें
कल कहूंगा मैं भी
हां सबके करीब हूँ
हाँ मैं मजदूर हूँ
लील गयी है आज जो
काल की विकराल लौ
कट गए नींद में ही
घर के देखते ख़्वाब वो
अब कैसे मिलूंगा माँ
अभी तो मैं दूर हूँ
पास आने की चाह में
हो गया हमेशा के लिए दूर हूँ
कौन समझे दर्द को
कि मैं कितना मजबूर हूँ
बस जनता हूँ यहीं मैं
हाँ मैं बस मजदूर हूँ
मैं बस एक मजदूर हूँ
😢 शायद उतने शब्द नहीं हैं मेरे पास जो इस हृदयविदारक घटना के बारे में कुछ सही से कह सकें। बस इतना ही कह पाऊँगा कि खबर सुन के और न्यूज चैनल पर तस्वीरों को देख के कलेजा कांप गया है। कोई जो सोया हो अपने घर के सपने आँखों में सजा के और सुबह में उसे मौत मिल जाय तो इस से क्रूर काल की नियति कोई और नहीं हो सकती।
आज सुबह में जो औरंगाबाद में 16 मजदूर एक मालगाड़ी के नीचे आकर काल के गाल में समा गए। कितनी विकट और दयनीय परिस्थिति है कि कुछ प्रवासी मजदूर जो अपने घर जाने के लिए पैदल ही महाराष्ट्र से मध्यप्रदेश की ओर चले ताकि श्रमिक एक्सप्रेस पकड़ के अपने घर जा सकें। पर चलते चलते इतना थक गए कि वहीं पटरियों पर ही सो गए। और आज तड़के एक मालगाड़ी उनके ऊपर से गुजर गई और नींद में होने की वजह से उन्हें सम्भलने तक का मौका न मिला। रेलगाड़ी के ड्राइवर ने भरसक कोशिश की रफ़्तार थामने की रेलगाड़ी की पर तब तक देर हो चुकी थी और 16 मजदूर मृत्यु की गोद में पहुचं चुके थे।
यहां अगर गलती खोजने की कोशिश करें या फिर इस पूरी घटना का विश्लेषण, तब भी समझ नहीं आता कि इसमें कमी किसकी है। क्या राज्य सरकार,केंद्र सरकार नाकाम रही है अपने उद्देश्यों में या फिर मजदूर ज्यादा व्याकुल हैं भूख और महामारी के डर से अपने घर पहुंचने की जल्दी को लेकर???
कुछ हद तक दोषी मानें तो सरकार को कह सकते हैं कि उन्हें आज की इस परिस्थिति में आगे आकर सभी को यक़ीन दिलाना जरूरी है कि वो सुरक्षित रहें और सरकार उनके जीवन यापन,भोजन और स्वास्थ्य हर तरह से उनका ख़याल रखेगी। यहां चूक हुई है तो बस यही है कि लोग परेशान और डरे हुए हैं जिन्हें कोई न तो भरोसा दिलाया जा रहा है और न ही सही मायनों में कोई मदद उन तक पहुँच पा रही है। ऐसे में हमारे प्रधानमंत्री जी को स्वयं देश के मजदूर वर्ग और आम जनता को फिर से सम्बोधित कर के उन्हें यक़ीन दिलाएं और राज्य सरकारों को भी निर्देशित करें ताकि कोई भी ऐसी स्थित में परेशान हो कर गलत कदम न उठाए।
अब जो जनहानि हुई है उसकी क्षतिपूर्ति तो नहीं की जा सकती परन्तु ऐसी ही कोई और दुर्घटना को घटने से रोकने के लिए सजग होना आवश्यक है।

आज इस दुःखद घटना में मृत्यु को प्राप्त सभी मजदूरों की आत्मा को ईश्वर शांति दे और उनके घर वालों को इस विकट परिस्थिति से उबरने की शक्ति दें
ॐ शांति ॐ शांति ॐ शांति