वो रास्ता मेरा न था, वो रास्ता तेरा न था जिसके सफ़र में हम रहे, वो दायरा कुछ और था। ना धूप थी ना छाँव थी, बस दरबदर थी ज़िन्दगी मंज़िल से अपनी बेख़बर , भटके हुए थे ख़्वाब भी दुनिया के अगले मोड़ पे, अपना पता कुछ और था। वो रास्ता मेरा न था..... ख़्वाहिश बहुत थी देखते , हम भी ख़ुशी के कारवाँ लेकिन ज़रूरी तो नहीं , हर चाह पूरी हो यहाँ हमको मिला कुछ और ही, दिल चाहता कुछ और था। वो रास्ता मेरा न था..... * राजेश मंथन * ©Rajesh Manthan Poet And Lyricist #dardkelafz #manthankishayri #rajeshmanthan #manthankikavita #manthanhindikavita