आँखें बन्द कर यूं ही मैं अक्सर वक़्त धकेल दिया करता हूँ कुछ बरस पीछे शब की ऊँची चोटी से लगा दिया करता हूँ छलाँग यादों के खामोश समंदर में और गहराइयों में डूबता जाता हूँ बस डूबता ही जैसे वहाँ मौजूद तलहटियों की चुप्पीयाँ पुकार रही हो मुझे बन के सदाएँ पर कभी-कभी.. अनगिनत लम्हों से गुजरते हुए लग जाते हैं मेरे हाथ तेरे अल्हड़पन के नील पत्थर तेरी शरारतों के रंगीन सीप तेरी मुस्कानों के हसीं मोती मुझ से नौसिखिए ग़व्वास को इससे बड़ा खजाना भला और क्या चाहिए! ©KaushalAlmora Song of d night: देर लगी लेकिन मैंने अब है जीना सीख लिया (शंकर महादेवन/ ZNMD) #ग़व्वास #रोजकाडोजwithkaushalalmora #kaushalalmora #yqdidi #नौसिखिया #मोती #खजाना