।। *विचलित मन* ।। शब्दों के अर्थ अब खोने लगे हैं, एक दूसरे से दूर सब होने लगे हैं। साथ में बैठने को जो तरसते थे कभी, अब दूर से ही प्रणाम करने लगे हैं सभी। न जाने कैसा ए दौर आया है, जो किसी के मन को न भाया हैं। सब एक दूसरे को देख तो सकते है, लेकिन छू नहीं सकते, एक दूसरे को समझा तो सकते है, लेकिन स्वयं समझ नहीं सकते हैं। न जाने कब तक इन दूरियों का खात्मा हो पाएगा, और इस कैद खाने से छुटकारा मिल पाएगा। अब तो छात्र छात्राएं भी दूर होने लगे हैं, सबके मन विचलित होने लगे हैं।। ©Seema Kumari #विचलीत_मन