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हम बर्बाद भी उस दिन हुए जिस दिन सारी दुनिया ने जशन

हम बर्बाद भी उस दिन हुए
जिस दिन सारी दुनिया ने जशन मनाया

तीन साल, कितना लम्बा वक्त होता है जब तुम किसी को चाहते हो और उससे बात करने की उसके साथ वक्त बिताने की पुरजोर कोशिश करते हो । यही इतना ही वक्त गुजरा था पहली बार देखने से लेकर पहली बार मिलने में । मिला तो जाने कितने ही दफे था उससे । लेकिन उसके साथ घूमने का आनन्द कुछ और ही था । जब पहली बार देखा था तो उस पगली की आँखों मे आँसु थे । दर्द के नही प्याज के मुझे पहले हँसी आयी लेकिन बाद में एहसास हुआ निकलते तो तेरे भी हैं । उस पर हँसने से अच्छा है क्युँ ना तु खुद पर हसे । फिर ऐसे ही जाने कितने मौके आये जब उससे मिला और मिलता रहा । 

उसके साथ घूमने का मौका मिला । वो भी अपने दोस्तों के साथ घूमने जा रही थी । मैं उसे देख कर समझ नही पाया ये इत्तेफाक है या कोई साजिश लेकिन जो भी था छः दिन रेल के और आठ दिन केरल में उसके साथ घूमने का मौका मिल गया था । जो तीन साल इंतजार लम्बे अंतराल के बाद मिला था ।  हाँ ये वक्त हसीन था जिसे अकेले घूमने का शोक हो जो किसी के साथ भी कही भी जाना पसन्द ना हो उसे ये साथ भा गया था । वो जो तीन साल के लम्बे इंतजार के बाद था । उससे बाते की तो पता चला की वो किसी और को पसंद करती है अपितु बहुत पसन्द करती है । उससे कहाँ की अलग होने के लिए तैयार रहो इस पर वो बिफर गयी नाराज हो गयी लेकिन आगे चलकर ये बात सच साबित हुई । इतने दिनों में हम एक अच्छे दोस्त बन गए थे  । Five Back In A Semester
हम बर्बाद भी उस दिन हुए
जिस दिन सारी दुनिया ने जशन मनाया

तीन साल, कितना लम्बा वक्त होता है जब तुम किसी को चाहते हो और उससे बात करने की उसके साथ वक्त बिताने की पुरजोर कोशिश करते हो । यही इतना ही वक्त गुजरा था पहली बार देखने से लेकर पहली बार मिलने में । मिला तो जाने कितने ही दफे था उससे । लेकिन उसके साथ घूमने का आनन्द कुछ और ही था । जब पहली बार देखा था तो उस पगली की आँखों मे आँसु थे । दर्द के नही प्याज के मुझे पहले हँसी आयी लेकिन बाद में एहसास हुआ निकलते तो तेरे भी हैं । उस पर हँसने से अच्छा है क्युँ ना तु खुद पर हसे । फिर ऐसे ही जाने कितने मौके आये जब उससे मिला और मिलता रहा । 

उसके साथ घूमने का मौका मिला । वो भी अपने दोस्तों के साथ घूमने जा रही थी । मैं उसे देख कर समझ नही पाया ये इत्तेफाक है या कोई साजिश लेकिन जो भी था छः दिन रेल के और आठ दिन केरल में उसके साथ घूमने का मौका मिल गया था । जो तीन साल इंतजार लम्बे अंतराल के बाद मिला था ।  हाँ ये वक्त हसीन था जिसे अकेले घूमने का शोक हो जो किसी के साथ भी कही भी जाना पसन्द ना हो उसे ये साथ भा गया था । वो जो तीन साल के लम्बे इंतजार के बाद था । उससे बाते की तो पता चला की वो किसी और को पसंद करती है अपितु बहुत पसन्द करती है । उससे कहाँ की अलग होने के लिए तैयार रहो इस पर वो बिफर गयी नाराज हो गयी लेकिन आगे चलकर ये बात सच साबित हुई । इतने दिनों में हम एक अच्छे दोस्त बन गए थे  । Five Back In A Semester
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