मीठी मीठी यादों से जब हार जाती तब पागल सा वो चेहरा मुझे हंसाने आ जाता अपनी मीठी मीठी बातो से मुझे पकाने आ जाता मैं अक्सर चिढ कर कहती -इतना केसे बाते कर लेते हो, मुझे तो बोलने से भी नफरत हो रही। गुस्से में कहती तंग आ गई हूँ, मैं इस दुनिया से। पागल तेरे हिस्से का भी तो बोलता हूँ अकसर इसी बात से चिढ होती उसकी वेबाकी मेरे खालीपन को भर देती क्यो मुझे वो इतना अपना लगता हंसते हंसते रो पड़ती क्यो उसके नाम को मैं उगली से जमीं पर लिखती प्यार नही उसकी आँखो मे अपनापन दिखता जाने क्यो वो अजनवी अपना सा लगता उसके होने से खिलखिलाहट होती 0r जाने पर घबराहट मुख पर नूर लाता चेहरे पर गुस्सा फिर भी भाता कुछ ऐसे ही वो अजनवी मुझे हंसाकर वापस अपनी दुनिया मे लौट जाता ।