#DearZindagi ना जाने कितने प्रपंच बुनता है ये आदमी, ना जाने कितनी मौत मरता है ये आदमी। खुद को सर्वोपरी बताने की चाह में, ना जाने कितनी बार डूबता है ये आदमी। शकसियत तो बड़ी खूबसूरत बनाई परवरदीगार ने, ना जाने क्यों उसे झुठलाने में लगा है ये आदमी। रिश्तों को तो क्या खुद को भी भूला चुका है, ना जाने और क्या क्या भूलेगा ये आदमी। ना जाने कितने प्रपंच बुनता है ये आदमी, ना जाने कितनी मौत मरता है ये आदमी। #DearZindagi