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*कला और पैसा* पैसा फेक तमाशा देख वाली दुनियाँ है..

*कला और पैसा*
पैसा फेक तमाशा देख वाली दुनियाँ है...
हुनर तब ही दमकता है जब कीमत चुकाता है!!!

गर ऐसा न होता तो हुनर की कद्र यहाँ होती....
कला की नुमाइश के लिए न बोली लग रही होती !!

सृजन तो बहुत करते हैं मगर प्रकाशित हैं चंद लोग..
जहाँ सिक्कों की चकमक है छपते वही हैं चंद लोग !!

हुनर की कद्र अगर होती  तो बिन कीमत कला पुजती !!
यूँ रजिस्ट्रेशन की रवायत न हर इक मंच पर होती ।।

प्रतिभा है कलमकारा जमाने को पता चलता ..
गर फोकट में रचना के प्रकाशन का चलन होता !!!

बड़ा अफसोस होता है सृजन की कीमत चुकाने में,,,
हुनर अनमोल पाकर भी बिकना होगा जमाने में !!

वरना गुमनाम रहेंगे मरते दम तक ऐसे ही...
सृजन हम लाख उम्दा करें शोहरत दिलायेँगे पैसे ही !!!

समझ में अब है ये आया मंच पाता कोई कैसे??
वही बन पाए कलाकार जिसने दिए हों कुछ पैसे !!

उसी का बोलबाला है उसी का चल रहा चैनल...
दिया है धन जिसने ज्यादा उसी की बन रही पैनल!!

मगर ये कैसा चलन है और कैसी ये रवायत ???
प्रदर्शन के लिए भी कलाकार ही दे कीमत!!!

मज़ा बहुत आता सम्मानित कला अगर होती..
केवल कला के दम पर ही मंच पर  शिरकत अगर होती !!!

मंच खरीदकर कलाकार यहाँ मंच पर आते हैं....
जितनी कीमत देते हैं उतनी शिरकत पाते हैं !!

मतलब पैसों के दम पर ही कला परवान चढ़ती है..
इस लिए तो मंच पर कला कम ही दिखती है !!

बदल दीजिए ये परिपाटी , उन्मुक्त कला निखरने दीजे .. 
निर्धन को भी मंच दीजिए ,प्रतिभा घुटने से बचा लीजिए ।
प्रतिभा घुटने से बचा लीजिए ।।

लेखिका/कवयित्री-प्रतिभा द्विवेदी मुस्कान ©
सागर मध्यप्रदेश ( 05 सितंबर 2022 )

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#lily  indu singh Vidushi Sarita Gupta Ayesha Aarya Singh  Ankita Tantuway ram singh yadav
*कला और पैसा*
पैसा फेक तमाशा देख वाली दुनियाँ है...
हुनर तब ही दमकता है जब कीमत चुकाता है!!!

गर ऐसा न होता तो हुनर की कद्र यहाँ होती....
कला की नुमाइश के लिए न बोली लग रही होती !!

सृजन तो बहुत करते हैं मगर प्रकाशित हैं चंद लोग..
जहाँ सिक्कों की चकमक है छपते वही हैं चंद लोग !!

हुनर की कद्र अगर होती  तो बिन कीमत कला पुजती !!
यूँ रजिस्ट्रेशन की रवायत न हर इक मंच पर होती ।।

प्रतिभा है कलमकारा जमाने को पता चलता ..
गर फोकट में रचना के प्रकाशन का चलन होता !!!

बड़ा अफसोस होता है सृजन की कीमत चुकाने में,,,
हुनर अनमोल पाकर भी बिकना होगा जमाने में !!

वरना गुमनाम रहेंगे मरते दम तक ऐसे ही...
सृजन हम लाख उम्दा करें शोहरत दिलायेँगे पैसे ही !!!

समझ में अब है ये आया मंच पाता कोई कैसे??
वही बन पाए कलाकार जिसने दिए हों कुछ पैसे !!

उसी का बोलबाला है उसी का चल रहा चैनल...
दिया है धन जिसने ज्यादा उसी की बन रही पैनल!!

मगर ये कैसा चलन है और कैसी ये रवायत ???
प्रदर्शन के लिए भी कलाकार ही दे कीमत!!!

मज़ा बहुत आता सम्मानित कला अगर होती..
केवल कला के दम पर ही मंच पर  शिरकत अगर होती !!!

मंच खरीदकर कलाकार यहाँ मंच पर आते हैं....
जितनी कीमत देते हैं उतनी शिरकत पाते हैं !!

मतलब पैसों के दम पर ही कला परवान चढ़ती है..
इस लिए तो मंच पर कला कम ही दिखती है !!

बदल दीजिए ये परिपाटी , उन्मुक्त कला निखरने दीजे .. 
निर्धन को भी मंच दीजिए ,प्रतिभा घुटने से बचा लीजिए ।
प्रतिभा घुटने से बचा लीजिए ।।

लेखिका/कवयित्री-प्रतिभा द्विवेदी मुस्कान ©
सागर मध्यप्रदेश ( 05 सितंबर 2022 )

©Pratibha Dwivedi urf muskan #कलाऔरपैसा #प्रतिभाउवाच #प्रतिभाद्विवेदीउर्फमुस्कान© #प्रतिभाद्विवेदीउर्फमुस्कानकीकलमसे #प्रतिभा #कलाकार #स्वरचितकविता #नोजोटो_हिंदी 
 

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