White मुरझा गया हूँ देख मैं तरह तरह के फ़रेबी, जो दूर के रिश्ते नहीं हैं बहुत क़रीबी..! ज़िन्दगी जीना कर देते हैं दूभर, इंसानियत भूल हैवानियत हो जाती है ऊपर..! तरसती निग़ाहें भर लेना चाहती हैं खुशियों की पनाहें, जीवन की कश्ती डूबती रहती तिनकों को तनिक चाहें..! मिलावट भी सहती मुख से कुछ न कहती, रहती क़ैद यूँ जंज़ीरों में सब कुछ सहती..! अमीरों की हवेलियों में उलझी पहेलियों में, बेचैनियों में पल पल हरदम ढहती रहती..! ग़रीबी ख़त्म करने वाले गरीबों को ख़त्म कर रहे हैं, शुद्ध पवित्र गंगा में धोते पाप और ऊँच नीच की नदियाँ बहती..! दबाई जाती आवाज़ हमेशा जूतियों तले, जले तरक्की से इनकी अमीरी दुनियाँ कहती..! ग़रीब होना कोई गुनाह नहीं सुना तो मुख से सभी के है, फना हो जाना ग़रीबी में ही ये तो ख़ुद की तौहीन रहती..! ©SHIVA KANT(Shayar) #Sad_Status #Murjhagyahun