कमबख़्त जमाना यूं ही बदनाम करता मर्द जात को, गम ना होता गर औरत ही समझ जाती औरत के जज्बात को। पति में हिम्मत कहां थी, गर लालची सांस जलाने की हामी ना भरती। पिता तो बेवजह बदनाम हुआ...... गर पोते की चाहत दादी न रखती, तो किसकी इजाजत से पोती कोख में मरती। वो भी नौकरी कर आत्मनिर्भर बनती, गर बाहर घूमती गंद है वो! कहकर पडोसन रंजिश ना कसती। वो भी अपने हक के लिए लड़ जाती, बेटी हो सहना सीखो कह गर मां उसको ना बरगलाती। सुबह-सुबह कहां जाती हो बेटी बूआ रोज़ पूछा करती, देर रात घर क्यों आते काश कभी तुम बेटे से भी पुछती। नारी तुमने ही अभिमान भरा पुरुष में, वरना तुमसे निकलकर तुमपर ही हुक्म चलाएँ इतना साहस कहां था उसमें। #naari_satru