नाराज़ आसमाँ से धरती ना जाने नाराज सी क्यों है। टहनी से गिरते पत्तों की कर्कश आवाज सी क्यों है।। आसमाँ में सैर करते बादल, भरे हुए है अश्रुओं से, भीगी है पलकें घन की, छायी घटा घनघोर है। गुजरना तो है उसे, उस शहर की ऊंची मीनारों से, रात भर तकते-तकते राहों को, होने वाली भोर है। दिन गुजरता नहीं चैन से, शाम में गाज सी क्यों है। आसमाँ से धरती........... धरती ने भी चाहा, कई बार छूना आसमाँ को, ओरों के सहारे पाटने लगे है अपनी दूरियाँ। नीरद ने भी बनाई इंद्रधनुषी सीढ़ियाँ मिलाने को, धूप ने खिलकर चुभो दी है ख्वाहिशों पर सुइयाँ। सब है अपनी जगह पर, धीमी धरा की चाल सी क्यों है। आसमाँ से धरती........... चांद ने आसमाँ को दी है आज भी थोडी सी दिलासा, ख्वाब तो पूरे कभी ना हो सके है, आसमाँ वालो के। धरती की चाहत में, बढ़ ना जाएं थोड़ी सी निराशा, सूर्य भी चमक रहा है, चमकाने नसीब जहाँ वालों के। वक्त है सबसे बड़ा मरहम, तो इसमें छूपी नाद सी क्यों है। आसमाँ से धरती ना जाने नाराज सी क्यों है। टहनी से गिरते पत्तों की कर्कश आवाज सी क्यों है।। #rsmalwar नाराज़ आसमाँ से धरती ना जाने नाराज सी क्यों है। टहनी से गिरते पत्तों की कर्कश आवाज सी क्यों है।। आसमाँ में सैर करते बादल, भरे हुए है अश्रुओं से, भीगी है पलकें घन की, छायी घटा घनघोर है।