प्रेम तो चिलचिलाती धूप में भी ठंडी ब्यार की शीतलता का अभिप्राय है। प्रेम के रूप अनेक हो सकते है, पर उनमे बहती धारा निःस्वार्थ और निश्छल होती हैं। मान लो प्रेम किसी कि एक झलक मे निहित है,तो उसका बाल्कनी मे आना जेठ की दुपहरी मे भी हिमालय की ताज़ी हवाओं सा अहसास देगा। मान लो प्रेम को शब्दाकृति किसी कि शब्दध्वनि से मिलती हो तो उसका आवाज़ लगाना दुर्गम पहाड़ियों पे स्थित मंदिर की बजती घंटियो से होगा जो भटके हुये मुसाफ़िर अपने पास होने का अहसास कराती है। मान लो प्रेम की अनुभूति किसी के लिखित शब्दों में उसकी अभिव्यक्ति मे मिलती हो तो उसे पढ़ना मरुस्थल में प्यासे को मिले उस जलप्रपात से होगा जिसकी उड़ती हुई बूंदों से जिव्हा के साथ-साथ अंतर आत्मा भी तृप्त हो जाती हैं प्रेम की अभिलाषा अनंत हैं जिसकी तृप्ति संभव नही जितना मिल जाये जितना दे दिया जाये इसकी पूर्ति संभव नहीं पाने वाले के मन मे और पाने की देने वाले के मन मे और देने की महत्वाकांक्षा हमेशा बने रहती। नवस्फूटन नवजीवन ही प्रेम है। चाहे वो मन मे भावनाओं का हो या किसी व्यक्ति विशेष का नित नई जन्म लेती अभिलाषा ही प्रेम हैं #साकेत #footsteps