सच में,.. कई बार बहुत देर हो जाती है वापिस लौट आने में काफ़ी कुछ पीछे बिखर और छूट सा जाता है जिसे समेटना मुश्किल सा हो जाता है ऐसा नहीं है मैं यह सब इसलिए कह रही हूं क्यूंकि मेरा कहीं कुछ पीछे छूट गया है बस यूँ ही... अब तुम ही बताओ ना सर्द पतझड़ पीछे रह गयी वह सुर्ख बसंत पीछे रह गयी और मैं.... नहीं समेट पा रही इतना कुछ जो पीछे छूट गया बस प्रतीक्षारत हूं पुनः जब सब लोटेगा मैं लिपट लुंगी सबसे किसी सी बेल की ही भांति और अपनी मनोव्यथा को अपने चक्षुयों से कहूँगी. ©'अल्प मैं लौटने को हूं वहाँ जहां मैं स्वयं की प्रतीक्षा में प्रतीक्षारत हूं,...